Jaundice Tretment
JAUNDICE
जब ब्लड यानी रक्त मे बिलिरुबिन (bilirubin) नामक केमिकल की मात्रा नॉर्मल से बहुत बढ़ जाय उसे पीलिया या ज्वांडिस कहते हैं । रक्त की जांच blood test से हम इसका पता लगा सकते हैं यह अपने में एक बीमारी नहीं है, मगर सूचक है कि शरीर में बिलिरुबिन का चयापचय ठीक से नहीं हो रहा है
जब लिवर, स्प्लीन एवं बोन मैरो के reticulo -endothelial cells द्वारा पुराने RBC's तोड़े जाते हैं, तब हिमोग्लोबिन से बिलिरुबिन नामक एक नारंगी - पीले रंग का पदार्थ निकलता है ।
यह पानी में घुलनशील नहीं है अगर लीवर ठीक काम करें तो यह बिलीरुबिन को बदलकर उसे घुलनशील बनाता है और उसे बाइल ( bile )बनाने के काम में उपयोग में लाता है | बाइल एम्पूला ऑफ वेटर (Ampoulla of vater) द्वारा छोटी आंत में पहुंचता है । वहां से बिलीरूबिन का अधिकांश भाग टट्टी में stercobilinogen बनकर निकल जाता है और कुछ भाग को शोषण किया जाता है वह पेशाब द्वारा urobilinogen के रूप में निकाल दिया जाता है।
साधारणतः रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा प्रति लीटर में 3 - 13 umol तक होता है ।
अगर बिलिरुबिन को घुलनशील रूप में लीवर नहीं बदल पाता तो रक्त में उसकी मात्रा अत्यधिक बढ़ने लगती है जिसे ही पीलिया करते हैं ।
जब बिलीरूबिन की मात्रा प्रति लीटर रक्त मे
34 umol से से ज्यादा होती है । तो आंखों की सफेदी पीली हो जाती है जो कि पीलिया का प्रथम लक्षण एवं सहज पहचान है । बीमारी के बढ़ने पर शरीर के म्यूकस मैम्ब्रेन (mucous membranes) त्वचा शरीर के सभी स्त्राव
(लार या सलाइवा, पेशाब पसीना, इत्यादि । बीमारी बढ़ जाने से पसीने की पीलेपन के कारण कपड़े भी पीले हो जाते हैं ।
जब रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा प्रति लीटर में 340 umol से ज्यादा हो तो ब्रेन के न्यूरॉन्स नष्ट हो सकते हैं जिससे fits भी आ सकते हैं ।
वैसे तो पीलिया किसी भी उम्र में आ सकती है
युवा अवस्था या उसके बाद उसके आने के कुछ कारण नीचे दिए गये हैं -जिसका पता sonography ( ultrasound) द्वारा किया जाता है ।
पीलिया के कारण अनपचाये fats टट्टी में भी दिख सकते हैं ।
जब बाइल का रास्ता एकदम ही अटक जाता है उसे obstructive jaundice कहते हैं,
जिसमें पेशाब में conjugated billirubin नामक पदार्थ होगा , मगर urobilinogen एकदम नहीं होगा ,
और उस हालत में टट्टी का रंग मिट्टी जैसा होगा ।
हिमोलाइटिक ज्वांडिस ( hemolytic jaundice) नामक बीमारी में RBC's इतनी जल्दी टूटती है कि लीवर ठीक होने पर भी ,उसकी सैल्स बिलीरुबिन को इतनी तेजी से रक्त से निकाल नहीं पाते जितनी तेजी से वह टूटी हुयी सैल्स से निकलता है । इस कारण पेशाब में urobilinogen की मात्रा बढ़ जाती है और टट्टी भी पीली आयेगी ।
मुख्य कारण है - लीवर के सैल्स ठीक से कार्य न करना जिनमें निम्न कुछ कारण है।
Amebic dusentery यानी जंतुओं के कारण दस्त (यह बच्चों को भी हो सकता है ) जो सेल्समैन बनकर प्रवास में रहते हैं उन्हें पीलिया दो कारण से हो सकता है बेवक्त भोजन ग्रहण करना, रास्ते में खाना पकाने के लिए उपयोग किए हुए तेल से संक्रमण इत्यादि से ।
मलेरिया टाइफौइड या अन्य इंफेक्शन के कारण बार-बार बुखार का आना
दवाइयों के दुष्परिणाम
सिरोसिस (cirrhosis) इत्यादि ।
क्योंकि बाइल का एक मुख्य काम है बिलीरुबिन को रक्त से निकालना तो बाइल का आना जाना ठीक से न हो पाने से -निम्न दो कारणों से ऐसा हो सकता है
बाइल डक्ट (Bile duct) में गोल स्टोन (gall stone) के अटक जाने या फँस जाने से रास्ता संकीर्ण हो जाता है जिसमें बाइल की आवक जावक में रुकावट आ जाती है
या
बाइल डक्ट में Fibrosis फाइब्रोसिस हो जाना
( गॉल स्टॉन के बाइल डक्ट के अंदर की झिल्ली बार-बार घाव और इनफॉरमेशन होने के कारण सख्त हो जाती है जिसे फाइब्रोसिस कहते हैं इससे उस में लचीलापन नहीं रहता शरीर के किसी भी पाइप से कोई भी स्त्रावी आने का सही तरीके से होने के लिए उसका लचीला होना अति आवश्यक है नहीं तो इस तरह के निकलने में अड़चन आएगी )
अगर पैक्रियास के ऊपर के भाग (head of the pancreas) पर कोई ट्यूमर हो तो
Neonatal jaundice of the newborn
जन्म के तुरंत बाद कुछ दिनों तक बच्चों का लीवर कुछ कम ही काम करता है ।
इस समय में लिवर बिलीरुबिन को ( soluble bilirubin ( यानी पानी में घुलने योग्य) नहीं बना पाता, जिसके कारण रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ने लगती है ।
तो बच्चे को पीलिया के लक्षण दिखने लगते हैं जैसे की आंखों में तथा त्वचा में पीलापन इत्यादि ।
खासतौर से जब जब बच्चे का जन्म नौवें महीने से पहले हुआ है तब जन्म के कुछ दिन बाद ऐसा हो सकता है -जिसे neonatal jaundice कहते हैं ।
इसका मुख्य कारण है उस बच्चे के स्पलीन में असाधारण रूप से RBC ,s ज्यादा मात्रा में टूटने लगते हैं ।
RBC,s के टूटने को hemolysis कहते हैं ।
अन्य कारण है -
सेप्टीसीमिया (septicemia) का होना या
बच्चे और मां के ब्लड ग्रुप (blood group) का न मिलना ।
कारण जो भी हो अगर उस समय हाइपाॅक्सिया (hypoxia) यानी ऑक्सीजन की कमी हो जाय तो लीवर उसे soluble bilirubin (यानी पानी में घूमने योग्य ) नहीं बना पाता ।
इससे भी ब्लड में bilirubin की मात्रा बढ़ने लगती है ।
बच्चों में अगर severe jaundice हो जाय तो वह basal ganglia तथा brain stem के cells को नष्ट कर देता है।
जिसके कारण बहरापन ,C P इत्यादि हो सकते हैं ऐसे बच्चों को सूर्य की किरणों से या नीले रंग की ट्यूबलाइट सें चिकित्सा की जाती है जिसे fhoto therapy कहते हैं । पीलिया चाहे किसी भी कारण से आई हो उसे ठीक करने का एक ही ट्रीटमेंट है
1 single point Liver X6
पहले कुछ दिनों तक हर घंटे पर देते जाइये, और जैसे-जैसे बीमारी की तीव्रता कम होती जाती है, वैसे वैसे दो ट्रीटमेंट के बीच का अंतर बढ़ाते जाये ।
दिन में कम से कम चार पांच tretment होनी चाहिए ।
बीमारी के लक्षण खत्म होने के बाद भी यह उपचार तीन चार महीने तक चालू रखें कि पेशेंट एकदम ठीक हो जायेगा जो कि विश्वास के बाहर की बात लगती है ।
पिछले कई वर्षों से कई सारे पेशेंट हमारे उपचार से इस बीमारी से ठीक हुए हैं, बिना किसी दवाई के ही!
ऊपर का उपचार लीवर संबंधी हर प्रकार की बीमारी के लिए बहुत ही बढ़िया है । जिसको बचपन में मलेरिया टाइफौइड हुआ था।
उन्हें भी यही देना है जिन्हें बचपन में पीलिया की बीमारी हुई हो उन्हें
Oxygen treatment formula
भी बहुत लाभ देगा ।
अगर पूछ ताछ से पता चले कि किसी दवाई लेने के कुछ दिनो बाद यह बीमारी आई हो तो
2nd tretment
ITF ,
दवाइयों के दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिये
NOTE- अगर गॉल स्टान के कारण बाईल डक्ट बंद होने के कारण पीलिया आया हो तो पीलिया ठीक होने के बाद गॉल स्टोन की प्रवृति को खत्म करने के लिए
Vater Tretment Formula
फार्मूला देना है।
--------------------------------------------------------Neurotherapist Mukesh sharma
Contect - 94143-34143
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