रिफाइंड तेल के नुकसान

 रिफाइंड ऑयल के नुकसान



हो सकता है की एक बार आप नाली का कचरा भी खा जाओ तो शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम उससे मुकाबला कर ले ,,परंतु रिफाइंड तेल के आगे आपकी प्रतिरोधक क्षमता भी जबाब देने लगेगी,,, हमेशा सदा के लिए रिफाइंड तेल का बहिष्कार करे और स्वस्थ रहे,,,,




 बहुत ज्यादा गम्भीर विषय है यह






रिफाइंड तेल के बारे में लोगों के बीच आम राय ये है कि इससे कम नुकसान होता है. जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि जैसा विज्ञापनों में दिखाया जाता है वो सिक्के का सिर्फ एक पहलू है. सिक्के का दूसरा पहलू जो कि स्याह है, कोई नहीं दिखाता है. रिफाइंड तेल पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है. आज ये कई विदेशी कंपनियों के लिए कमाने का एक अच्छा स्त्रोत है. अपने फायदे के लिए इन लोगों ने टेलीविजन विज्ञापनों और कई अन्य तरीकों से इसका खूब प्रचार किया. लेकिन जब इसपर भी बात बनती नहीं दिखी तो इन्होंने डॉक्टरों के माध्यम से इसके तथाकथित फायदे गिनवाने शुरू कर दिए. तब डॉक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्शन में रिफाइन तेल लिखना शुरू कर दिया कि तेल, सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना. जबकि उन्हें ये कहना चाहिए कि घानी से निकला हुआ शुद्ध सरसों का तेल खाओ, तिल का खाओ या मूंगफली का खाओ. अचानक से ही एक हल्ला होने लगता है कि आपकी सेहत का ध्यान रखने, रिफाइन तेल आ गया है. हम बिना किसी जांच और रिपोर्ट को ना देखते हुए बस इसका उपयोग करने लगते हैं. आइए देखें कि रिफाइंड तेल के नुकसान क्या-क्या हैं.


 




ये हैं मुख्य नुकसान


रिफाइन तेल बनाते समय जिस तरह के केमिकल इस्तेमाल हो रहे हैं वह हमारे शरीर को अन्दर से कमजोर बनाते जा रहे हैं. काई बार तो इसको बनाने में एक खास तरह का साबून भी उपयोग में लाया जा रहा है. जिसकी वजह से हमारा पेट अक्सर खराब रहने लग सकता है. सफोला के तेल को प्रयोगशाला में जांचा गया, सूरजमुखी तेल के अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया गया. इसमें से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता. ऐसा करने से तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है. दूर्भाग्य से उसी को हम खा रहे हैं इसलिए तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है. तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपमें अच्छा कोलेस्ट्राल बढ़ेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे. तो शायद अब आप समझ गये होंगे कि आखिर क्यों हमारे पूर्वज शुद्ध सरसों का तेल खाने में उपयोग करते थे तभी उन दिनों दिल की समस्या इतनी कम होती थी.


 




क्या है विकल्प?


प्राकृतिक पदार्थों का कोई विकल्प नहीं है. यानी आपके सेहत के लिए सबसे बेहतर विकल्प यही है कि आप शुद्ध तेल खाइए, तिल का, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का. अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में एक तो बास बहुत आती है और दूसरी ये कि शुद्ध तेल में चिपचिपाहट बहुत होती है. कई शोधों से पता चला है कि तेल का चिपचिपापन ही उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है. यानी तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाल दिया जाता है तो पता चलता है कि ये तो तेल ही नहीं रहा. मतलब ये कि तेल में जो बास आ रही है वो उसका प्रोटीन कंटेंट है. शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है. जहां तक सवाल है तेलों में बास की तो आपको बता दें कि वो उसका ऑर्गेनिक कंटेंट है प्रोटीन के लिए. 4 -5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, जैसे ही हम तेल में से बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल देने पर उसका फैटी एसिड गायब. अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो फिर वो तेल किस काम का? वो तो बस पानी है, जहर मिला हुआ पानी. और ऐसे रिफाइन तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होने की संभावना प्रबल होती है. जैसे घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात, पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि. पूरे मनोयोग से रिफाइन तेल खाए जाने वाले घरों में ये समस्या आप पाएंगे. जिनके यहाँ इसका इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ स्ट्रोक और दिल के दौरे की समस्याएं ज्यादा है



*आप का और आप के परिवार का जीवन बचाना चाहते हैं तो यह पोस्ट जरूर पढे, वरना आपकी मर्जी...!*

सबसे ज्यादा मौतें देने वाला भारत में कोई खाद्य पदार्थ है तो वह है... *रिफाइंड तेल*

 केरल आयुर्वेदिक युनिवर्सिटी आंफ रिसर्च केन्द्र के अनुसार, हर वर्ष लगभग 20 से 25 लाख लोगों की मौतों का कारण बन गया है...
*रिफाइंड तेल*

*आखिर भाई राजीव दीक्षित जी के कहें हुए कथन सत्य हो ही गये...*

रिफाइंड तेल से *DNA डैमेज, RNA नष्ट, हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज, ब्रेन डैमेज, लकवा, शुगर (डाईबिटीज), ब्लड प्रेशर, नपुंसकता, कैंसर*
*हड्डियों का कमजोर हो जाना, जोड़ों में दर्द, कमर दर्द, किडनी डैमेज, लिवर खराब, कोलेस्ट्रोल, आंखों रोशनी कम होना, प्रदर रोग, बांझपन, पाईलस, स्केन त्वचा रोग आदि हजार रोगों का प्रमुख कारण है।* 

*रिफाइंड तेल बनता कैसे हैं.?*
बीजों का छिलके सहित तेल निकाला जाता है, इस विधि में जो भी Impurities तेल में आती है, उन्हें साफ करने वह तेल को स्वाद गंध व कलर रहित करने के लिए रिफाइंड किया जाता है।

*वाशिंग*
*Washing*
वाशिंग करने के लिए पानी, नमक, कास्टिक सोडा, गंधक, पोटेशियम, तेजाब व अन्य खतरनाक एसिड इस्तेमाल किए जाते हैं, ताकि सारी अशुद्धियां या Impurities इस बाहर हो जाएं।
इस प्रक्रिया मैं तारकोल की तरह गाढ़ा वेस्टेज (Wastage} निकलता है जो कि टायर बनाने में काम आता है। यह तेल ऐसिड के कारण जहर बन गया है। 

*Neutralisation*
*न्यूट्रलाइजेशन*
तेल के साथ कास्टिक या साबुन को मिक्स करके 180°F पर गर्म किया जाता है। जिससे इस तेल के सभी पोस्टीक तत्व नष्ट हो जाते हैं।

*Bleaching*
*ब्लीचिंग*
इस विधी में P.O.P. {प्लास्टर ऑफ पेरिस} /पी.ओ.पी. यह मकान बनाने मे काम ली जाती है/ का उपयोग करके तेल का कलर और मिलाये गये कैमिकल को 130°F पर गर्म करके साफ किया जाता है! 

*Hydrogenation*
*हायड्रोजिनेशन*
एक टैंक में तेल के साथ निकोल और हाइड्रोजन को मिक्स करके हिलाया जाता है। इन सारी प्रक्रियाओं में तेल को 7-8 बार गर्म व ठंडा किया जाता है, जिससे तेल में पालीमर्स बन जाते हैं, उससे पाचन प्रणाली को खतरा होता है और भोजन न पचने से सारी बिमारियां होती हैं। 
*निकेल* एक प्रकार का Catalyst या उत्प्रेरक metal (लोहा) होता है जो हमारे शरीर के Respiratory system,  Liver,  skin,  Metabolism,  DNA,  RNA को भंयकर नुकसान पहुंचाता है। 

रिफाइंड तेल के सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं और एसिड (कैमिकल) मिल जाने से यह भीतरी अंगों को नुकसान पहुंचाता है। 

जयपुर के प्रोफेसर श्री राजेश जी गोयल ने बताया कि, गंदी नाली का पानी पी लें, उससे कुछ भी नहीं होगा क्योंकि हमारे शरीर में प्रति रोधक क्षमता उन बैक्टीरिया को लड़कर नष्ट कर देता है, लेकिन रिफाइंड तेल खाने वाला व्यक्ति की अकाल मृत्यु होना निश्चित है! 

*दिलथाम के अब पढ़िये...*
*हमारा शरीर 63 करोड़ कोशिकाओं से मिलकर बना है, शरीर को जीवित रखने के लिए पुरानी कोशिकायें नई कोशिकाओं से Replace होते रहते हैं नये Cells (कोशिकाओं) बनाने के लिए शरीर खुन का उपयोग करता है,,*
*यदि हम रिफाइंड तेल का उपयोग करते हैं तो खुन मे टॉक्सिन्स या जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है व शरीर को नए सेल बनाने में अवरोध आता है,*
*तो कई प्रकार की बीमारियां जैसे* 
*कैंसर, डायबिटीज, हार्ट अटैक, किडनी समस्या,*
*एलर्जी, पेट में अल्सर, प्रीमैच्योर एजिंग, नपुंसकता, अर्थराइटिस, डिप्रेशन, ब्लड प्रेशर आदि हजारों बिमारियां होगी।*

रिफाइंड तेल बनाने की प्रक्रिया से तेल बहुत ही मंहगा हो जाता है, तो इसमे पाम आयल मिक्स किया जाता है! (पाम आयल स्वयं एक धीमी मौत है) 

*सरकार का आदेश...*
हमारे देश की पॉलिसी अमरिकी सरकार के इशारे पर चलती है।
अमरीका का पाम खपाने के लिए, मनमोहन सरकार ने एक अध्यादेश लागू किया कि, 
प्रत्येक तेल कंपनियों को 40 %
खाद्य तेलों में पाम आंयल मिलाना अनिवार्य है, अन्यथा लाईसेंस रद्द कर दिया जाएगा! 
इससे अमेरिका को बहुत फायदा हुआ, पाम के कारण लोग अधिक बिमार पडने लगे, हार्ट अटैक की संभावना 99% बढ गई, तो दवाईयां भी अमेरिका की आने लगी, हार्ट मे लगने वाली  स्प्रिंग (पेन की स्प्रिंग से भी छोटा सा छल्ला) , दो लाख रुपये की बिकती हैं, 
यानी कि अमेरिका के दोनो हाथों में लड्डू, पाम भी उनका और दवाईयां भी उनकी! 

*अब तो कई नामी कंपनियों ने पाम से भी सस्ता, गाड़ी में से निकाला काला आयल...*
*(जिसे आप गाड़ी सर्विस करने वाले के पास छोड आते हैं)* 
*वह भी रिफाइंड कर के खाद्य तेल में मिलाया जाता है, अनेक बार अखबारों में पकड़े जाने की खबरे आती है।*

सोयाबीन एक दलहन हैं, तिलहन नही... 
दलहन में...
मूंग, मोठ, चना, सोयाबीन, व सभी प्रकार की दालें आदि होती है।

तिलहन में...
तिल, सरसों, मूंगफली, नारियल, बादाम आदि आती है।

अतः सोयाबीन तेल,  शुद्व पाम आयल ही होता है। पाम आयल को रिफाइंड बनाने के लिए सोयाबीन का उपयोग किया जाता है।

सोयाबीन की एक खासियत होती है कि यह, 
प्रत्येक तरल पदार्थों को सोख लेता है, 
पांम आंयल एक दम काला और गाढ़ा होता है, 
उसमे साबुत सोयाबीन डाल दिया जाता है जिससे सोयाबीन बीज उस पाम आयल की चिकनाई को सोख लेता है और फिर सोयाबीन की पिसाई होती है, जिससे चिकना पदार्थ तेल तथा आटा अलग अलग हो जाता है, आटा से सोया मुगौड़ी बनाई जाती है! 
आप चाहें तो किसी भी तेल निकालने वाले के सोयाबीन ले जा कर, उससे तेल निकालने के लिए कहे!महनताना वह एक लाख रुपये  भी देने पर तेल नही निकालेगा, क्योंकि. सोयाबीन का आटा बनता है, तेल नही! 

सूरजमुखी, चावल की भूसी (चारा) आदि के तेल रिफाईनड के बिना नहीं निकाला जा सकता है, अतः ये जहरीले ही है! 

फॉर्च्यून.. अर्थात.. आप के और आप के परिवार के फ्यूचर का अंत करने वाला...

सफोला... अर्थात.. सांप के बच्चे को सफोला कहते हैं! 
5 वर्ष खाने के बाद शरीर जहरीला 
10 वर्ष के बाद.. सफोला (सांप का बच्चा अब सांप बन गया है. 
15 साल बाद.. मृत्यु... यानी कि सफोला अब अजगर बन गया है और वह अब आप को निगल जायगा.! 

पहले के व्यक्ति 90.. 100 वर्ष की उम्र में मरते थे तो उनको मोक्ष की प्राप्ति होती थी, क्योंकि उनकी सभी इच्छाए पूर्ण हो जाती थी।

और आज... अचानक हार्ट अटैक आया और कुछ ही देर में मर गया....? 
उसने तो कल के लिए बहुत से सपने देखें है, और अचानक मृत्यु..? 
अधूरी इच्छाओं से मरने के कारण.. प्रेत योनी मे भटकता है। 

*राम नही किसी को मारता...*
*न ही यह राम का काम!*
*अपने आप ही मर जाते हैं....*
*कर कर खोटे काम!!*
गलत खान पान के कारण, अकाल मृत्यु हो जाती है! 

*सकल पदार्थ है जग माही..!*
*कर्म हीन नर पावत नाही..!!* 
अच्छी वस्तुओं का भोग..
कर्म हीन, व आलसी व्यक्ति संसार की श्रेष्ठ वस्तुओं का सेवन नहीं कर सकता।

तन, मन, धन और आत्मा की तृप्ति के लिए सिर्फ कच्ची घाणी का तेल, तिल सरसों, मूंगफली, नारियल, बादाम आदि का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए!
पौष्टिकता वर्धक और शरीर को निरोग रखने वाला सिर्फ कच्ची घाणी का निकाला हुआ तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए! 
आज कल सभी कम्पनी..
अपने प्रोडक्ट पर कच्ची घाणी का तेल ही लिखती हैं! 
वह बिल्कुल झूठ है.. सरासर धोखा है! 
कच्ची घाणी का मतलब है कि,, लकड़ी की बनी हुई, औखली और लकडी का ही मुसल होना चाहिए!
लोहे का घर्षण नहीं होना चाहिए। इसे कहते हैं.. कच्ची घाणी।
जिसको बैल के द्वारा चलाया जाता हो।

आजकल बैल की जगह मोटर लगा दी गई है।

लेकिन मोटर भी बैल की गति जितनी ही चले।

लोहे की बड़ी बड़ी एक्सपेलर (मशीनें) उनका बेलन लाखों की गति से चलता है जिससे तेल के सभी पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं और वे लिखते हैं..
*कच्ची घाणी...*
इस पोस्ट को शेयर किजिए यह लोगों के प्राण बचाने की मुहिम हैं,अतः ज्यादा से ज्यादा अपनों तक पहुचायें और खुद भी अमल करें।




Neurotherapist mukesh Sharma

                     9414334143



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