Cerebral pasly tretment in neurotherapy


 *स्पैस्टीसिटी एंव सेरेब्रल पैल्सी*


Spasticity And Cerebral Pasly


स्पैस्टीसिटी का मतलब मसल का Tone बढ़ जाना। इसमें माँस-पेशियों के अंदर के टेन्डन के कड़क हो जाते हैं। ऐसे बच्चों की गर्दन स्थिर नहीं रहती। स्पास्टीसीटी में उनके मसलज कड़क हो जाता हैं।


यह अपर मोटर न्यूरौन्स (Upper motor neurons) में lesion यानि घाव के कारण हो सकता है, जैसे कि हेमीप्लेजिया (hemiplegia) यानि एक बाजू के हाथ और पैर के पैरालाइसिस में होता है। उसमें मसल पैरालाइस नहीं होते, लेकिन वे कमजोर होते हैं, एंव उन पर अपर मोटर न्यूरौन्स का कंट्रोल नहीं होता। लिम्फ के मसल भी कड़क हो सकते हैं और अंग अनचाहे हलचल कर सकते है, जिसके कारण वे अंग और भी कड़क बन सकते हैं।


स्पैस्टीसिटी किसी भी उम्र में किसी अन्य बीमारी के साथ आ सकती है। उदाहरण के लिये वह उन रोगियों में हो सकती है, जिन्हें कुछ साल से लकवा हुआ हो। लेकिन जब यह बच्चों में होती है, तब वह अक्सर सेरेब्रल पैल्सी नामक जन्मजात बीमारी के साथ जुड़ी हुयी होती है। सेरेब्रल पैल्सी - दिमाग की बीमारी है। इसका मतलब है- दिमाग का कुछ भाग पैरालाइस हो गया है। इसमें दिमाग के


सेरेब्रम नामक भाग को कुछ देर तक ऑक्सीजन न मिलने के कारण वह ठीक से कार्य नहीं कर सकता। हमारे शरीर के कई कार्यों को ठीक से होने के लिये सेरेब्रम का सही होना आवश्यक है- जिसमें मुख्य है अंगो के हलचल का नियंत्रण ।


गुरूजी के गहरे अनुभव में जो उन्होंने पाया है, सो उनके ही शब्दों में हम नीचे दे रहे हैं- बच्चे का जन्म नौ महिनें बाद में होना ही ठीक है, क्योंकि बच्चे के लंग्ज़ नौवें महिने में ही मैच्योर (Mature) होते हैं, यानि लग्ज़ का विकास नौवे महीने में ही होता है। अगर उस का जन्म पहले हो जाता है, तो लंग्ज़ के अपूर्ण विकास के कारण वह जन्म के तुरन्त बाद ठीक तरह से श्वास नहीं ले पाता। तो उसे कुछ समय के लिये इन्क्युबेटर (incubator यानि गरम पेटी) में रखना पड़ता है। अगर बच्चे का जन्म नौ महीने से पहले ही हो जाऐ, या अगर जन्म के समय बच्चे का वजन 2.5 किलो से कम हो, तो उसे प्रीमॅच्योर बच्चा (Premature baby) कहते है। ऐसे बच्चों के लिये 


LMNT का पहला और सबसे बेहतरीन उपचार है- Oxygen फॉर्मुला। इसे बच्चे के माँ-बाप को सिखा देना चाहिये, और कहना कि तीन-चार महीने तक दिन में एक या दो बार दें। इन्क्युबेटर में भी कभी-कभी ऑक्सीजन ज्यादा


छोड़ दी जाये तो बच्चा अन्धा भी हो सकता है, इस का भी ध्यान रखना जरूरी है। जन्म के समय या पूर्ण नौ महीने के दौरान कभी भी माँ का ब्लड प्रैशर हाई नहीं होना चाहिये। अगर माँ का ब्लड प्रैशर हाई हो जाता है तो ऐसी अवस्था में जन्म के बाद बच्चा मन्द बुद्धि होगा। पर LMNT में उसे एक दो महीने एक दिन छोड़ कर कोल (Chole) ट्रीट्मेंट के उपचार कर कर बच्चे को ठीक किया जा सकता है।


बच्चे का जन्म नौरमल होना चाहिये यानि वह दूसरे किसी औझार के बिना, अपने आप ही यूट्रस से बाहर निकल जाना चाहिये। अगर औझार से खीचकर निकालते है, तो वह फोरसैप्स बौरन (forceps born) है तो भी वह मन्द बुद्धी हो सकता है- जिसे हम LMNT द्वारा ठीक कर सकते है। उसे पहले कुछ दिन निम्न उपचार देना चाहिये ।


Injury treatment Formula


फिर 4-6 दिन निम्न उपचार- एक दिन छोड़कर देने चाहिये


TT. Heparin


बच्चे क जन्म नौरमल होना ही ठीक है पर बच्चा चाहे सीज़ेरीयन

(cesaerean) पैदा हो पर उस को जन्म के समय रोना जरूर चाहिये तो वह ठीक होगा। डॉक्टर या नर्स (nurse) ने उस का नाडू तब तक नहीं काटना चाहिये जब तक बच्चा अपने आप ठीक से न रोये। रोने के बाद भी नाडू को तब तक नहीं काटना चाहिये जब तक की नाडू में से रक्त का आना जाना बन्द न हो जाये । और काटने से पहले नाडू के अंदर जो थोड़ा रक्त है, उसे दबा कर या निचोड़ कर बच्चे में डालने के बाद ही काटना चाहिये।


ध्यान रहे हम सभी माँ के पेट में नौ महिना नहीं रोये थे सो जन्म के बाद अगर बच्चा तुरन्त नहीं रोया तो भी उसे तकलीफ नहीं होगी जब तक नाडू के साथ उसका टूटा नहीं। क्योंकि उस के हार्ट की धड़कन चालू है जिस से उस के ब्रेन तथा शरीर को खून पूरा दिया जा रहा है और नाडू द्वारा उसके रक्त में माँ के शरीर से ऑक्सीजन तथा अन्य आवश्यक चीजें मिल जाती है तो वह बच्चा मन्द बुद्धि का नहीं होगा लेकिन अगर नाडू काटने वाली नरस (nurse) के अनारीपन से बच्चे का नाडू रोने से पहले काटा गया या दूसरे शब्दों में उस की धड़कन का बन्द होने का इन्तज़ार न करना एक बहुत बुरा काम होगा। उस नरस की छोटी-सी भूल ने बच्चे का एंव उसके माँ बाप का जीवन खराब कर दिया- जो उसे उठा उठा कर कभी इस हस्पताल या कभी दूसरे में लेते जाते रहते है। हस्पतालों के धक्को में सारा जीवन खराब हो जाता है। लड़का हआ तो समस्या कुछ कम है। लेकिन अगर लड़की हुई तों उस की माँ उसे कभी अकेला नहीं छोड़ सकती। और अपने रिश्तेदारों के अच्छे बुरे में जाना बन्द कर देती है। फिर चौदह साल तक अगर वह लड़की ठीक न हुयी तो मजबूरन उसका यूट्रस निकलवा देते है- यह ध्यान देने का विषय है।


ब्रेन के अंदर के थक्कों को खोलने के लिये हम निम्न उपचार देते है-


M. Heparin


यह उपचार द्वारा जो बच्चे नहीं रोये या दूसरे शब्दों में उन के दिमाग में जो खून का बहाव न होने से या औक्सिजन न मिलने से जो खराबी आ जाती है वह हम ठीक कर देते है।


अगर उन बच्चों की टट्टी में अनपचा खाना आता है तो हम UDF treatment देते है, जिससे उनके पेट की ऐसिड भी बढ़ जायेगी और उन बच्चों की स्पैस्टीसिटी भी कम होती जायेगी। ध्यान रहे कि पेट ही में खाली ऐसिड बनती है। बाकी सभी ग्रंथियों का स्त्राव ऐल्कलीन होता है।


माँ को गर्भ धारण करने से पहले मैन्सस यानि मासिक धर्म 28-30 दिन पर आ जाने चाहिये। और ब्लीडिंग चार दिन से ज्यादा नहीं होनी चाहिये। अगर ब्लीडिंग छे-सात दिन आती है तो हम समझते हैं कि उसके मां का हायपो थाइरोइड्-इज़म (hypo-thyroidism) है, जिस से भी बच्चा मन्द बुद्धि हो सकता है। और अगर बच्चे को टट्टी एक दिन छोड़कर या ज्यादा दिन छोड़कर आती है या रोज़ नहीं आती, तो हम समझ सकते है कि बच्चे को हायपो थाइरोइड्-इज़म की शिकायत अवश्य है।


तो उसे यह उपचार देना है-


(1/2) Ku-40 secs (6) Medulla (4) Thrd 'P' (4) Thrd.


यह हायपो थाइरौइड्-इज़म ठीक करने का LMNT फॉर्मुला है, जिसका कार्य इस प्रकार है-


(1/2) Ku-40 secs


पीनियल ग्लैंड को उकसाने


(6) Medulla


हाइपोथैलमस द्वारा TSH. RH के लिये


(4) THRD "P"


ऐन्टीरियर पिट्यूट्री द्वारा TSH के लिये


(4) THRD.


हौरमोन्स के लिये


एक महिना या ज्यादा यह उपचार करें, जिस से उस को काफी आराम मिलता है वा बुद्धि का विकास होता है। ऊपर के सब उपचारों के बाद बच्चे को नीचे लिखे अनुसार उपचार देते जाना है-


NAM/FAN


1,25 DCC


M.Heparin


बच्चा जिस फ्यूइड (fluid) में माँ के पेट में होता है, वह antiseptic यानि कीटाणु नाशक है जिसे हरी ने बनाया है कि वह बाहरी कीटाणुओं से बच्चे की त्वचा की रक्षा करेगा। सो जन्म के तुरन्त बाद उस फ्लूइड को पूरा साफ नहीं करना चाहिये, सात दिन बाद उसे धीमे-धीमे साफ करना चाहिये। हिन्दू शास्त्रों द्वारा कहा गया है कि जन्म के बाद बच्चे को माँ से तुरन्त मिलाना चाहिये ताकि माँ के हृदय की धड़कन को वह तुंरत सुने और माँ के शरीर की कीटाणु का उसके शरीर के साथ संपर्क रहे । लेकिन यहाँ पर नर्सिंग होम में उसे पूरा धोकर उस पर खुशबूवाला पाउडर लगाया जाता है - जो उसके शरीर के लिये शायद ठीक नहीं है- और बाद में ही बच्चे को माँ के पास दिया जाता है। जनम के तुंरत बाद से ही पाउडर उसके शरीर में लगेगा तो

उस कंपनी का माल ही उस शरीर का राजा बनेगा- यह सोचने का विषय है। दूध पिलाने पर भी दो बातें करना है- एक यह कि माँ को ही बच्चे को अपना दूध पिलाना चाहिये । और दूध पिलाते समय उसे बच्चे के हाथ को खोल देने चाहिये ताकि जब माँ दूध पिलाये तो उस बच्चे का हाथ थनों में लगने से - उस स्पर्श से ही दूध आने व पैदा होने की मात्रा बढ़ जायेगी जो बच्चे के लिये बहुत उत्तम है।

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