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Cerebral pasly tretment in neurotherapy

 *स्पैस्टीसिटी एंव सेरेब्रल पैल्सी* Spasticity And Cerebral Pasly स्पैस्टीसिटी का मतलब मसल का Tone बढ़ जाना। इसमें माँस-पेशियों के अंदर के टेन्डन के कड़क हो जाते हैं। ऐसे बच्चों की गर्दन स्थिर नहीं रहती। स्पास्टीसीटी में उनके मसलज कड़क हो जाता हैं। यह अपर मोटर न्यूरौन्स (Upper motor neurons) में lesion यानि घाव के कारण हो सकता है, जैसे कि हेमीप्लेजिया (hemiplegia) यानि एक बाजू के हाथ और पैर के पैरालाइसिस में होता है। उसमें मसल पैरालाइस नहीं होते, लेकिन वे कमजोर होते हैं, एंव उन पर अपर मोटर न्यूरौन्स का कंट्रोल नहीं होता। लिम्फ के मसल भी कड़क हो सकते हैं और अंग अनचाहे हलचल कर सकते है, जिसके कारण वे अंग और भी कड़क बन सकते हैं। स्पैस्टीसिटी किसी भी उम्र में किसी अन्य बीमारी के साथ आ सकती है। उदाहरण के लिये वह उन रोगियों में हो सकती है, जिन्हें कुछ साल से लकवा हुआ हो। लेकिन जब यह बच्चों में होती है, तब वह अक्सर सेरेब्रल पैल्सी नामक जन्मजात बीमारी के साथ जुड़ी हुयी होती है। सेरेब्रल पैल्सी - दिमाग की बीमारी है। इसका मतलब है- दिमाग का कुछ भाग पैरालाइस हो गया है। इसमें दिमाग के सेरेब्रम नामक

Non stic, काला जहर

  नोन #स्टीक_टफलोन_कोटिंग  काला जहर😟😤😤😤😤😤😤 😆😤😤😤😤😤😤😤😤😤                                                         ■ टेफलोन कोटिंग या काला जहर ???? टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों का इतना प्रचार या दुष्प्रचार हुआ कि आजकल हर घर में ये काली कोटिंग वाले बर्तन होना शान की बात समझी जाती है। न जाने कितने ही ये टेफलोन कोटिंग वाले बर्तन हमारे घर में आ गये हैं, जैसे कि नॉन स्टिक तपेली (पतीली), तवा, फ्राई पेन आदि....अब इजी टू कुक, इजी टू क्लीन वाली छवि वाले ये बर्तन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए है।  मुझे आज भी दादी नानी वाला ज़माना याद आ जाता है, जब चमकते हुए बर्तन किसी भी घर के स्टेंडर्ड की निशानी माने जाते थे, लेकिन आजकल उनकी जगह इन काले बर्तनों ने ले ली है। हम सब इन बर्तनों को अपने घर में बहुतायत से उपयोग में ले रहे हैं और शायद कोई बहुत बेहतर विकल्प नहीं मिल जाने तक आगे भी उपयोग करते रहेंगे। किन्तु इनका उपयोग करते समय हम ये बात भूल जाते हैं कि ये काले बर्तन हमारे शरीर को भी काला करके नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम में से कई लोग यह बात जानते भी नहीं हैं कि वास्तव में ये बर्तन हमारी बीमारियाँ

दुनियां की सबसे कम फीस में सीखे

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*दुनिया की सबसे कम फीस में सीखे*          *न्यूरोथैरेपी सम्पूर्ण कोर्स*               NEUROTHERAPY *कहा जाता है पहला सुख निरोगी काया. अपने शरीर का सबसे ज्यादा खयाल रखो, इसी की बदौलत आप कोई भी काम करने में सक्षम होते हैं. यदि यही किसी काम का नहीं रहेगा, तो आप जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएंगे. इसलिए सेहत का खयाल रखें और शारीरिक और मानसिक, दोनों रूप में सेहतमंद रहें*                😄*उपचार से रोजगार*😄                    💍 *सुनहरा मौका*💍 💉*चिकित्सा जगत में कैरियर बनाने का एक शानदार अवसर*💉 N0 Medicine 💊 No pain, 😩 No side Effect,        ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  यह कोर्स कोई भी ,कभी भी, किसी भी उम्र में कर सकता है *न्यूरो थेरेपी* *प्रशिक्षण*  *NEUROTHERAPY* *COURSE*  यह कोर्स भारत के हर राज्य में उपलब्ध है युवक / युवतियां यह कोर्स कर सकते है सभी बीमारियों का न्यूरो थेरेपी द्वारा सफल इलाज कोर्स के बाद आप छोटी बड़ी कई बीमारियों का इलाज स्वयं कर सकेंगे जैसे  पेट से संबंधित सभी रोग, नाभी से जुड़ी सभी समस्या जोड़ों का दर

रिफाइंड तेल के नुकसान

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  रिफाइंड ऑयल के नुकसान हो सकता है की एक बार आप नाली का कचरा भी खा जाओ तो शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम उससे मुकाबला कर ले ,,परंतु रिफाइंड तेल के आगे आपकी प्रतिरोधक क्षमता भी जबाब देने लगेगी,,, हमेशा सदा के लिए रिफाइंड तेल का बहिष्कार करे और स्वस्थ रहे,,,,  बहुत ज्यादा गम्भीर विषय है यह रिफाइंड तेल के बारे में लोगों के बीच आम राय ये है कि इससे कम नुकसान होता है. जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि जैसा विज्ञापनों में दिखाया जाता है वो सिक्के का सिर्फ एक पहलू है. सिक्के का दूसरा पहलू जो कि स्याह है, कोई नहीं दिखाता है. रिफाइंड तेल पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है. आज ये कई विदेशी कंपनियों के लिए कमाने का एक अच्छा स्त्रोत है. अपने फायदे के लिए इन लोगों ने टेलीविजन विज्ञापनों और कई अन्य तरीकों से इसका खूब प्रचार किया. लेकिन जब इसपर भी बात बनती नहीं दिखी तो इन्होंने डॉक्टरों के माध्यम से इसके तथाकथित फायदे गिनवाने शुरू कर दिए. तब डॉक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्शन में रिफाइन तेल लिखना शुरू कर दिया कि तेल, सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना. जबकि उन्हें ये कहना चाहिए कि घानी से निकला हुआ शुद्ध सरसों

Anorexia भुख ना लगना उपचार

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Anorexia                             भूख न लगना   यह बीमारी ज्यादा  तौर पर ज्यादा शराब पीने वालों को या जो drugs जेसी दवाइयों के आदि है - उन्हें आती है। इस में भूख न लगना , उदासी का रहना , शरीर का टूटना , बुखार का कभी कभी आना , पेट का खराब होना इत्यादि होता है । ये अधिक तर दवाइयों  के साईड इफैक्ट्स से आती है । नींद ठीक से आए , तभी भूख ठीक से लगेगी । सो हम सेरोटोनिन को विभिन्न जगहों से उकसाता है जो नींद लायेगी। 1st. Day.  1  ITF - ( दवाइयों के दुष्प्रभाव को खतम करने के लिए )  N A N - (पेट सेट कर ने के लिए)    2nd. Day.(8) Medulla (6) Gas'I' (6) ADR   (20) ( back of knees)   (8) Medulla      ब्रेन के सेरोटोनिन के लिये  (6) Gas I          आतडियो के नर्वस सिस्टम द्वारा सेरोटोनिन बनाने के लिये  (6) Adr            कॉर्टीसॉल के लिये (20) (back of knees)। इससे नींद अच्छी आती है  (6) Adr           इसलिए दिया है क्योंकि ऐड्रिनल ग्लैंड के कॉर्टीसॉल की कमी से भी व्यक्ति को डिप्रेशन , उदासी या भूख न लगना इत्यादि हो जाता है ।         अगर पेशंट के हाथ काप रहे हो या हाथों या पांवों का ठंडा रहन

जीना है तो गेहूं छोड़ो

 *जीना है तो गेहूं छोड़ो.....* अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डॉ विलियम डेविस।उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी 2011 में जिसका नाम था "Wheat belly गेंहू की तौंद"।यह पुस्तक अब फूड हेबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक बन गई है। पूरे अमेरिका में इन दिनों गेंहू को त्यागने का अभियान चल रहा है। कल यह अभियान यूरोप होते हुये भारत भी आएगा। यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध है और कोई फ़्री में पढ़ना चाहे तो भी मिल सकती है। चौंकाने वाली बात यह है कि डॉ डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह मक्का, बाजरा, जौ, चना, ज्वार या इन सबका मिक्स (सामेल) अनाज ही खाना चाहिये गेंहू नहीं, जबकि यहां भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह शाम गेहूं खा खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं। आज इस संदर्भ में मेरे मित्र ने चर्चा छेड़ी तो यह पोस्ट लिख रहा हूं। गेहूं मूलतः भारत की फसल नहीं है।  यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांता बाबर के भारत आ